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सूरदास का जीवन परिचय हिंदी में कक्षा 10 pdf | सूरदास | रचनाएं,दोहे,लोकगीत,पद

Important Questions 

● सूरदास का जीवन परिचय हिंदी में कक्षा 10 pdf | सूरदास
● सूरदास के पद
● सूरदास के लोकगीत
● सूरदास के दोहे
● सूरदास की प्रमुख रचनाएं
सूरदास कौन थे?

सूरदास का जीवन परिचय हिंदी में कक्षा 10 pdf | सूरदास | रचनाएं,दोहे,लोकगीत,पद

● सूरदास कौन थे?

सूरदास, भारतीय साहित्य में मशहूर हिंदी भक्तिकाल के कवि थे। उनका जन्म 1478 ईस्वी में हुआ और उनका निधन 1584 ईस्वी में हुआ। सूरदास भक्तिकाल के मशहूर संत-कवियों में से एक माने जाते हैं और उन्हें संत-कवि कहा जाता है।
सूरदास ने अपनी कविताओं में प्रमुखतः कृष्ण भक्ति के विषय में लिखा है। उनकी कविताओं में उन्होंने कृष्ण के बाल लीलाओं, गोपी प्रेम और उनके भक्तों के प्रेम को व्यंग्यपूर्ण रूप से दर्शाया है। उनकी कविताएं भाषा में सरलता, भावनाओं में गहराई और साहित्यिक दक्षता के कारण प्रसिद्ध हुई हैं।
सूरदास का जन्मस्थान मथुरा जिले के सिहोरा गांव माना जाता है। उनकी कविताएं ब्रज भाषा में लिखी गई हैं, जो उत्तर भारतीय भाषाओं में प्रचलित थी। उनकी कविताओं का अधिकांश हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान है और उन्होंने भक्ति साहित्य को एक नया आयाम दिया।


● सूरदास का जीवन परिचय हिंदी में कक्षा 10 pdf | सूरदास


भावपक्ष-:


सूरदास का भावपक्ष भक्ति और प्रेम की ओर मुख करना था। उनकी कविताएं विशेष रूप से कृष्ण भक्ति को समर्पित हैं। सूरदास कृष्ण को अपने ईश्वरीय प्रेमी, अनुरागी और परम उपास्य रूप में देखते थे। उन्होंने कृष्ण के गोपी प्रेम, उनके लीलाओं, मधुर संगीत, वृंदावन की छवि और भक्तों के प्रेम को अपनी कविताओं में दर्शाया।
सूरदास की कविताएं भावनात्मकता, प्रेम और विश्वास के गहरे भावों से भरी होती हैं। उन्होंने भक्ति और प्रेम के माध्यम से आत्मिक एकीकरण की प्रशंसा की है और मानव-दैवीय प्रेम के विचारों को संगीतमय रूप में व्यक्त किया है। उनकी कविताओं में आध्यात्मिकता, प्रेम, साधना, वैराग्य, दया और जीवन के मूल्यों को प्रमुख रूप से प्रगट किया गया है।
सूरदास के रचित "सूर सागर", "सूर सरावली", "सूरदास पदावली" और "सूरदास भजनावली" आदि कविता संग्रह उनकी प्रसिद्ध रचनाएं हैं।

कलापक्ष-:


सूरदास जी ने भगवान कृष्ण के लीला-कथाओं को अपनी कविताओं के माध्यम से अत्यंत सुंदरता और भक्ति भाव के साथ प्रस्तुत किया। उनकी कविताओं में प्रेम और भगवान के साथ आनंदित संवाद का वर्णन किया गया है। सूरदास जी की कविताएं हिंदी और अवधी भाषा में लिखी गईं, जिन्हें 'पद' भी कहा जाता है।
सूरदास जी का कालापक्ष (कलापक्ष) उनकी कविताओं का विशेष चरित्रित अवधारणा है। उन्होंने अपनी कविताओं में अपूर्णताओं, त्रुटियों, असम्पूर्णताओं, तथा अपारदर्शिता और बहुमुखी प्रतीति के माध्यम से व्यक्तिगत अनुभवों को व्यक्त किया है। इसका मतलब है कि कवि को अपने भक्ति और प्रेम के साथ भगवान की ओर प्राप्त होने की आकांक्षा रखने के बावजूद, वे अपनी कमजोरियों पर आधारित नही होते।

साहित्य मे स्थान-:


सूरदास जी का साहित्य हिंदी साहित्य के विशेष महत्वपूर्ण हिस्से में स्थान रखता है। उनकी कविताएं भक्ति और प्रेम के मध्यस्थ विशेष सम्बन्ध को व्यक्त करती हैं और उनके साहित्य में वैष्णव भक्ति आंदोलन का महत्वपूर्ण स्थान है।
सूरदास जी के पद ग्रंथ "सूरसागर" उनके सबसे प्रसिद्ध काव्य-संग्रह में से एक है। इसमें वे भगवान कृष्ण की विभिन्न लीलाओं को भक्तिपूर्वक वर्णन करते हैं और अपनी आत्मीयता के माध्यम से भगवान के साथी बनने की इच्छा व्यक्त करते हैं।
सूरदास जी की कविताएं सुंदरता, अनुभूति, उमंग, विचारशीलता और भक्ति की गहराई के लिए प्रसिद्ध हैं। उनकी रचनाएं आदिकाल से आधुनिक काव्य के माध्यम से अवधी भाषा में लिखी गई हैं और उनका साहित्य लोकप्रियता और प्रभावशाली भक्तिमयता के कारण प्रमुख हिंदी कवियों को प्रभावित करता रहा है।

● सूरदास के पद

सूरदास जी के पदों का संग्रह "सूरसागर" के नाम से प्रसिद्ध है। इस संग्रह में कई पद हैं जो उनकी कविताओं का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। यहां कुछ प्रमुख पदों का उल्लेख किया जा रहा है:

"जो दिन चाहे वो आए" (Jo Din Chahe Vo Aaye)

"मेरे तो गिरिधर गोपाल" (Mere To Giridhar Gopal)

"हरि मेरी राखा" (Hari Meri Rakha)

"मैं तो तेरे नखरे बिगड़ा जाऊँगी" (Main To Tere Nakhre Bigad Jaungi)

"बिरहा की आग जले" (Biraha Ki Aag Jale)

"प्रेम मनोहर मोरे संग लगाई" (Prem Manohar More Sang Lagai)

"जब से गोपाला तुम्हारे चरण" (Jab Se Gopala Tumhare Charan)

"आयो चित्त द्वार" (Aayo Chitt Dwar)

ये केवल कुछ उदाहरण हैं, सूरदास जी के पदों की संख्या बहुत अधिक है और उनमें भक्ति, प्रेम, भावुकता, आदर्शता और भगवान के साथ अनुभवों की गहराई को व्यक्त करने की अन्य बहुत सारी रचनाएं शामिल हैं।

● सूरदास के लोकगीत

सूरदास एक मशहूर हिंदी कवि थे जो भक्ति और साहित्यिक काव्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनकी कविताएं और लोकगीत आज भी लोकप्रिय हैं और लोक संगीत के क्षेत्र में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। यहां कुछ सूरदास के प्रसिद्ध लोकगीतों के नाम हैं:

● "मैं तो घनश्याम कालीन्दी धाम": यह एक प्रसिद्ध लोकगीत है जो सूरदास द्वारा भक्ति और प्रेम के विषय पर रचा गया है। इस गीत में सूरदास अपने प्रेमी श्रीकृष्ण की महिमा का वर्णन करते हैं।

● "मेरे तो गिरिधर गोपाल दूसरो न कोई": यह एक और प्रसिद्ध लोकगीत है जिसमें सूरदास श्रीकृष्ण के प्रेमी गोपाल की महिमा गाते हैं और अपने अद्भुत प्रेम को व्यक्त करते हैं।

● "जौं नैना आस पास बसे नैना ही नैना को देखे": यह गीत सूरदास की कविता पर आधारित है और प्रेम के विषय में है। इस गीत में सूरदास अपनी राधा के प्रेम के बारे में बताते हैं।

● ब्रज में नंदलाल चलीसा": यह लोकगीत सूरदास द्वारा श्रीकृष्ण के गुण और लीलाओं की प्रशंसा के लिए गाया जाता है। इस गीत में भक्ति भाव के साथ सूरदास अपने आदर्श श्रीकृष्ण की महिमा का वर्णन करते हैं।

● "पाये रे मैंने राम रतन धन पायो": यह एक आराधना-भजन है जिसमें सूरदास राम चंद्रजी की प्रेम महिमा के लिए गाते हैं। इस गाने में उन्होंने भगवान के प्रेम की महत्ता और आनंद का वर्णन किया है।

● "मीराबाई के पद": सूरदास की रचिति में अनेक मीराबाई के पद शामिल हैं जो प्रेम और भक्ति के विषय में हैं। इन पदों में सूरदास ने मीराबाई के भक्ति और प्रेम के अनुभव को व्यक्त किया है।

● "वो दिन खदग उठाये": यह गीत सूरदास द्वारा श्रीकृष्ण और अर्जुन के संवाद के रूप में गाया जाता है।

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● सूरदास के दोहे

सूरदास एक प्रसिद्ध हिंदी कवि थे जिन्होंने भक्ति और प्रेम के विषय में अपनी काव्यरचनाएँ लिखीं। यहां कुछ प्रसिद्ध सूरदास के दोहे हैं:

● बिना देखे प्रेम जानत नहीं, जीवन बिना अंखियाँ काँटा नहीं। जो देखते हैं सो जानते हैं, अवगुण निर्मल देखि दिन रात।।

अर्थ: सूरदास कहते हैं कि प्रेम को बिना देखे तथा अपनी आंखों से नहीं जाना जा सकता। जीवन में बिना आंखों के काँटे जैसा ही कुछ नहीं हो सकता। जो चीजें हम देखते हैं, उन्हें ही हम जानते हैं और उनकी सच्चाई को दिन-रात निरंतर देखते रहते हैं।

दाता बड़ी चिंता से देत है, लाख करोड़ कष्ट सहत हैं। सुख चाहे सब कोई करत नहीं, देत वित विमल जन सोई।।

अर्थ: सूरदास कहते हैं कि भगवान बहुत चिंताओं से दान करते हैं, वे लाखों करोड़ों कष्ट उठाते हैं। सुख की इच्छा हर किसी को होती है, लेकिन केवल उन्हीं पवित्र लोगों को मिलता हैं जो दान करते हैं।

बाल बाल जाऊं छै संग, निरखत होत निरखीय। तोषे उठत बहुत नाहीं, मन लहत अरिहीय।।

अर्थ: मैं बचपन से ही भगवान के संग खेलता रहा हूँ, लेकिन उन्हें निरखने या पहचानने में मैं बहुत विफल रहा हूँ। बहुत बार मेरी प्रार्थनाएं पूरी नहीं होती हैं और मेरा मन निराश हो जाता है।

मातु पितु गुरु प्रभु मोरे, सब रखवारे मैं आपन तेरे। जो नहीं जानत हैं तुम्हारे, ताको दुख कैसे सहें फेरे।।

अर्थ: मेरी माता, पिता, गुरु और भगवान सभी मेरे रखवाले हैं। मैं तुम्हारा हूँ, तुम्हें नहीं जानने वालों को दुःख कैसे सहना पड़ेगा।

कबीर धन जो तुम्हारे पास, सोई घट में नागरिया। समझत नहीं हैं जग जीवन, यह मेरा नहीं वह तेरा है।।

अर्थ: हे भगवान, जो धन तुम्हारे पास है, वही एक घट में नागरिया है। दुनिया नहीं समझती कि यह जीवन मेरा नहीं।

कहैं कबीर ऐसी वाणी, ज्यों पतंग छोंछ से जान। ज्यों गंध मधुर मिठाई की, रे त्यों मुख अमृत जीवन।।

अर्थ: कबीर कहते हैं कि उनकी वाणी पतंग की तरह है, जो छोंछ से निकलती है। वह गंध की तरह मधुर और मिठाई की तरह है, जो मनुष्य के मुख को अमृत जीवन देती है।

दृढ़ जीवन अग्नि धायी, पिंड पावक सुख भरायी। जाकी अन्तर जगत समायी, ताकी जीवन भव-बंध न टरायी।।

अर्थ: यह जीवन एक दृढ़ अग्नि है, जो पिंड को पावक से भर देती है। जो अपने अन्तर में जगत् से समायी हुई है, उसका जीवन भव-बंधन को नष्ट नहीं करता है।

सोच तें भांति भजु रे मना, जो कुछ होने को होय। काल करे सो आज कर, आज करे सो अब।

अर्थ: हे मन, तू ऐसे भजन कर, जैसे कुछ होने वाला हो। काल जो करना है, वह आज कर, और जो आज करना है, वह अब कर।

● सूरदास की प्रमुख रचनाएं

सूरदास की रचनाओं में से कुछ प्रमुख रचनाएं निम्नलिखित हैं:

👉🏻 सूर सागर

👉🏻 सूरदास के पद

👉🏻 सूरदास के बालकृष्ण रास

👉🏻 सूरदास के दोहे

👉🏻 सूरदास के सोने चंदी के वार्तालाप

👉🏻 सूरदास के काव्यांश

ये रचनाएं सूरदास के भक्तिसंबंधी काव्य का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। इनमें वे भगवान की प्रेम और भक्ति को प्रकट करते हैं और उनके संगीत, विरह, प्रेम लीला, गोपी व गोपाल की रासलीला, और वैष्णव भक्ति के विभिन्न पहलुओं का वर्णन करते हैं।
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