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समाज

समाज


 मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और उसका हक है कि वह समाज मे रहकर ही समाज को ठीक प्रकार से समझे और उसके अस्तित्व की रक्षा करे।
विकास और सहयोग ही समाज को व्यापक और व्यवस्थित रूप दे सकते है जो कि उचित भी है।


लोगो का मानना है कि विशेष व्यक्तियो का समूह ही समाज है बल्कि ऐसा नही है तो हमारे मन मे एक विशेष रुचि जागती है कि आखिर ये..
1. समाज क्या है?
2. कैसे है?
3. इसका अस्तित्व क्या है?

वास्तव मे अगर इन सवाल के जवाब देखा जाए तो समाज के बारे पता चलता है कि समाज केवल व्यक्तियो का समूह नही,यदि आप ये भी सोचे की मनुष्य ही समाज है।तो ये भी अनुचित है..स्त्री-पुरुष,बालक सभी मिलकर भी एक समाज नही है अपितु मेरा मानना है कि समाज छोटे से सूक्ष्मजीव से लेकर मनुष्य के अलावा सभी जैविक जीव मिलकर ही समाज का निर्माण करते है।
वास्तविक रूप से समाज से समाज की यही परिभाषा है।

वास्तविक रूप से हमे समाज की वास्तविकता पता न होने के कारण हमे केवल मनुष्य पक्ष को ही समाज समझते थे जबकी वास्तविकता कुछ और ही है।
जब तक हम समाज की वास्तविकता से अवगत नही होते है तब तक समाज की रक्षा कैसे करे क्योकि वास्तविक ज्ञान ही नही इसके बारे मे..
अगर हम समाज को समझेंगे नही तो इसकी सुरक्षा भी हमसे न होगी.वास्तव मे अगर हम समाज को समझते होते तो हम पेड-पौधो और जीव-जन्तुओ का विनाश न करते।

देखा जाए तो हमे समाज के प्रत्येक कडी की आवश्यकता होती है अगर एक भी कडी न हो तो समाज की स्थिती गंभीर हो जाती है।
अगर हम समाज को ठीक तरह से परिभाषित करेगे तो हम वास्तविकता से अवगत होगे और विनाश को रोकने का एक समुचित प्रयास करेगे।

समाज की बुराई:- 

समाज की बुराई है कि सभी प्रजाति केवल अपनी प्रजाति को ही समाज मानते है चाहे वह मनुष्य हो या कोई प्रजाति हो,जब उसे वास्तविक ज्ञान नही होता तब वह केवल अपने ही प्रजाति को महान मानकर ही अपने मे ही व्यस्त रहते है और दूसरो के महत्व को नही समझते अपितु यह सुनिश्चित करता है कि हमारे अलावा किसी और का महत्व नही है।

समाज को केवल इतने मे ही समझना अनुचित है।
समाज का एक व्यापक रूप है।
इसे समझना मतलब मानवता या पृकति को समझने जैसा है।
समाज के कई रूप है।
समाज का आकार भी समझना भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना समाज को समझना।

जैसा की हमने यह निश्चय किया की हम समाज की वास्तविकता से अवगत होगे और विकास मे योगदान देगे

देखा जाए तो
वास्तविकता ये है कि हमे विद्यालय मे अपने शिक्षको द्वारा उचित शिक्षा नही मिलती वो केवल बिषयो को ही महत्व देते है जबकी उन्हे हमे एक निश्चित उमृ मे ही इन सब बातो से अवगत करा देना चाहिए ताकि हम विकास के मार्ग मे समाज को न भूले।

समाज को इस तरह से परिभाषित किया गया की इसी बीच हम प्रकृति को भी समझ सकते है।

समाज मे अच्छाई और बुराई दोनो पक्ष होते है पर आधार ये है की हम वास्तविक समाज से परिचित नही है तो केवल हम अपने स्वार्थ अनुसार ही समाज को अच्छे और बुरे पक्ष मे जोडे हुए है यह हम अपनी मानसिकता के परे रखते है अगर हम गलत भी करते है तब भी हमे अपनी गलतियो का एहसास नही होता क्योकि हमे पता भी नही होता कि हमने आखिर किया ही क्या है।

कुछ प्रश्न इस प्रकार है..

1.समाज क्या है?
2.समाज का महत्व क्या है?
3.समाज का निर्माण कैसे हुआ?
4.समाज की बुराई क्या है?
5.समाज की अच्छाई क्या है?
6.समाज के मार्ग मे बाधक तत्व क्या है?
7.समाज का विकास कैसे हो?
8.समाज के विकास जरूरत क्यो है?

इन्ही सब सवाल के जवाब हम अपनी आने वाली Post मे चर्चा का विषय समझकर जानेगे।

समाज के बारे मे अभी पूरी जानकारी हमे भी नही है पर हम अपनी अगली Post मे जानकारी प्रदान करने का हर संभव प्रयास करुगा।


समाज का एक व्यापक और व्यवस्थित रूप होना चाहिए पर अभी तक वो रूप देखने को नही मिला है पर इस धारणा को गलत ठहराया जा सकता है पर  इसे गलत साबित करने के लिए हमे ही कुछ न कुछ प्रयास करने चाहिए। प्रयास से ही ये संभव हो सकता है पर समाज को सुरक्षित और समुचित कर पाना किसी एक के लिए संभव नही है पर प्रयास भी गलत नही है प्रयास से क्या कुछ संभव नही है।
प्रयास भले ही सार्थक न हो पर हमे ज्ञान अवश्य देकर जाता है।



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